सोमवार, 25 सितंबर 2023

जनगणमन

 निकले हो टटोलने को जनता मन तुम , एक पल बैठ कभी अपनों का टटोला है  I

कर रहे कार्य कैसे जीवन का यापन कैसे एक क्षण बैठ कभी अपनों से बोला है ।I

बनते हो ज्ञानवान देते हो उपदेश सदा ,सिद्धांत महावीर का तुमने ही तोडा है  I

त्राहिमाम मची थी तृष्त थी मनुजता संकट के क्षण में कर्मचारी को न छोड़ा है II

की थीअवहेलना आदेशों की तार-तार सरकारी अनुदान का फायदा उठाया था I

लेकर के सहारा कोरोना का सरेआम कर्मचारियों को भी नौकरी से हटाया था II

बनते  हो अपने को बहुत बड़ा मर्मज्ञ  क्या कभी तुमनेअपना मर्म भी टटोला है I

जानते हैं सभी जन तुम्हारे दोगले रूप को ,खेल तुमने सदा दोगला ही खेला है II



शनिवार, 2 अप्रैल 2022

जग में रामायण कहलाती हूँ

मैं सतयुग की अमर कहानी हूँ ,
जग में रामायण  कहलाती हूँ l
में न्याय धर्म का अमर ग्रंथ हूँ  ,
हरदम सतपथ को दिखलाती हूँ --1

मैंने धर्म निभाया हरदम ,
सच को सदा बताया  था i 
पथ से विचलित नहीं हुआ ,
हर उसको गले लगाया था --2 

जो भी हुआ दिखाया उसको ,
फिर चाहे सही या गलत हुआ i 
प्रेम धर्म जब जिसने अपनाया ,
मैने उसका पूरा साथ दिया --3 

जनमानस को सुख देती हूँ में  ,
पर मेरा भी तिरस्कार हुआ है  i 
जब जिसने मुझको अपनाया ,
उसका कुल उद्धार हुआ है-4 

जग में जो भी घटा जंहा पर ,
वह सब वैसा दिखलाया है i 
जिसने जैसा कर्म किया था ,
उसको वैसा  ही बतलाया है  --5  

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

फिर ये सारा देश जलायेंगे


बो चुके अमन के बीज बहुत ,
अब और डालना बंद करो |
पिला चुके हो दूध बहुत ही ,
अब और पिलाना बंद करो ||1||

यह कोई धर्म नहीं कहता है,
सब मौन साध कर रह्जाओ |
वो तुम पर हरदम वार करें ,
तुम अनुज समझ सहते जाओ ||2||

आ गया समय हो एक उठो ,
यह कब तक सहते जाओगे |
जो कहते आये काफिर तुमको,
आखिर कबतक अपनाओगे ||3||

जो जिस भाषा का आदि हो,
अब उत्तर उस में देना होगा |
यदि अजगर फुंकार रहा हो  ,
 तो बस मर्दन करना होगा || 4||

साफ साफ अब समझा दो,
इन जफ़र की औलादों  को |
बहुत हो चुका  नहीं सहेंगे ,
अब इन कायर गद्दारों को ||5||

अब कुचलो इनका फन ऐसा,
कर पुनः नहीं हिम्मत पायें  |
कर दो इलाज अबपूर्ण रूप ,
फिर मांग नहीं पानी पायें ||6||

सत्ता तो आती ओ जाती हैं,
ये पुनः और मिल जाएगी |
यदि मूल नहीं काटी इसकी,
 ये विषबेल औ बढ़ जाएगी ||7||

कर दो इलाज जड़ से इसका,
फिर अब पुनः नहीं बढ़ने पाये |
जिस उद्देश्य हेतु भेजा तुमको,
बस वह शेष धरा न रह जाये ||8||

खुद जो मांग रहे हों आजादी ,
अब गया समय आजाद करो,
हों नहीं रहम के जो खातिर,
मत उन पर अब  रहम करो || 9||

कर दिया रहम तुमने इन पर,
ये फिर अपनी औखात दिखायेंगे |
है अभी जली  दिल्ली केवल ,
फिर ये सारा देश जलायेंगे ||10||

                            देवदत्त पालीवाल"निर्भय"
                         8619945463/9448417578

























सोमवार, 30 दिसंबर 2019

फिर ऐसा दिवस न आएगा

है आवरत तम से धरा, अब ज्योति की उम्मीद कम है |
धर्म का दिनकर उगेगा लगती बहुत उम्मीद कम है ||
है समय अभी भी सम्भालो,छोड़कर मतभेद मन के |
है हित छिपा इसमें सभी का,है नहीं विपरीत जन के ||
तुम न दोगे साथ यदि ,तो फिर यह समय न पाओगे |
जो है हितेषी आज अपना वह फिर कभी न पाओगे ||
सोचो जरा तुम हो कहा पर वो दिनरात बढ़ते जारहे |
जो हैं सदा द्रोही हमारे उनपर विश्वास करते जारहे ||
है मिला मुश्किल से नायक,अब साथ तो देना पड़ेगा |
भूल यदि करदी अगर तो फिर बैठ कर रोना पड़ेगा ||
फिर पीडिया पछ्तायेगी, ओर यह समय न आएगा |
छिप गया यदि दिवाकर,फिर ऐसा दिवस न आएगा ||

बुधवार, 27 नवंबर 2019

थम गया शोर उद्दंडो का

उद्धव ठाकरे द्वारा कांग्रेस एनसीपी एवं अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन करने अवं बीजेपी के साथ धोखा कर सरकार बनाने संबंध में जनमानस की प्रतिक्रिया :-

सिद्धांत बेच तुम चरण चुम,
कुल की मर्यादा  भूल गए |
सत्ता के लालच में आकर,
तुम देश धर्म भी भूल गए ||

तुम कहते हो जिनको उदंडी,
तुम कितने दूध धुले निकले |
जिनके बल पर बहुमत पाया,
पर तुम सबसे कपटी निकले ||

लिख दो कुछ भी निज पत्रों में,
यह तो बस दुकान तुम्हारी हैं | 
अब चोर चोर सब एक हुए हैं ,
अब तो उलट फेर की  बारी हैं || 

थे जिनके अब तक धुर द्रोही,
उनको ही सबकुछ मान लिया | 
तुमने पुत्र मोह में अंधे होकर ,
खूंटी पर सबकुछ टांग दिया || 

तुम भूल गए सब देश धर्म ,
सिद्धांत मान सब भूल गए | 
सत्ता को सबकुछ मान लिया,
तुम जनमानस को भूल गए || 

धिक्कार तुम्हें कुछ शर्म करो,
थी आश नहीं तुमसे इतनी | 
तुम  इस हदतक गिर जाओगे,
थी उम्मीद नहीं तुम से इतनी || 

अब देख्नेगे  कितना बोलोगे ,
अब धर्म  निभाओगे पाओगे | 
अब होगा रिमोट उनके कर में ,
पग एक न तुम चल पाओगे || 

जो किया कपट तुमने जन से,
वो अब कभी नहीं हट पायेगा | 
जो दाग लगाया है कुल पर ,
अब वो कभी नहीं मिट पायेगा || 













शनिवार, 16 नवंबर 2019

उद्धव ठाकरे का पुत्र मोह


सिद्धांत बेचकर जब मानव
निज पथ से हटने लगता है | 
असली रूप बदलकरके  जब 
वह नाटक करने लगता है || 

पुत्र मोह  में फंसकर के जब,
वह ताल ठोकने लगता है | 
तब समझो कुल की मर्यादा,
पर दाग लगाने लगता है || 

सत्ता के लालच में आकर,
जब ईमान बेचने लगता हैं | 
तो समझो खुद ही निज हाथों 
वह   कब्र  खोदने  लगता हैं || 

हो जाता है स्पष्ट स्वतः ही,
कि ये तो एक दिखावा था | 
पर तुम तो सत्ता के भूखे थे,
हिंदुत्व तो एक बहाना था || 

यदि करे आंकलन मौतों का.
तो  प्रथम तुम्हारा आता है | 
हो अगर हितेषी कृषको के,
तो क्यों वह भूखा मर जाता है || 

यदि काम किया  होता तुमने ,
तो यह हाल तुम्हारा न होता | 
 बहुमत मिलता सत्ता मिलती ,
और राज तुम्हारा ही होता || 

पर पुत्र मोह में आकर तुमने ,
निज कुल पर दाग लगा डाला | 
अब हो गया साफ पूरा चेहरा ,
था जिस पर तुमने पर्दा डाला || 

बंद कर अब ये व्यर्थ प्रदर्शन,
बस हम  सच्चे हिंदूवादी हैं | 
बाकि सब सत्ता के भूखे है,
हम सदा बचन के आदि हैं || 

था जिनसे तुमको बैर सदा ,
क्यों उन चरणों को चूम लिया | 
ले नाम यहाँ पंहुचे जिनका,
मुख अपना उनसे मोड़ लिया || 

हैं राष्ट्र धर्म के जो रक्षक,
तुमने उनसे नातातोड़ लिया | 
सुखदुःख में जो थे साथी हरपल ,
संग उनका तुमने  छोड़ दिया || 

अब मिलकर के ये बेरी सारे 
निज असली रूप दिखायगे | 
अपमान सहा अबतक जो भी,
सब मय ब्याज उसे ले जायँगे || 

मद अहंकार जब मानव में 
हद से ज्यादा बढ़ जाता है | 
तब हो जाता है ज्ञान हीन,
पथ वरण मौत का जाता है  || 


















शनिवार, 9 नवंबर 2019

अयोध्या निर्णय

                                  
तिरपलवास खत्म हुआ शंकाओं का भी दौर अब दूर होना चाहिए | 
जो सेंकते  थे रोटियां उनको अब हो मौन बैठ शांत  जाना चाहिए || 
चंद रुपयों के खातिर बिके थे जो कोर्ट में उनको शर्म थोड़ी चाहिए | 
हुई बरसात खूब धूलगए पाप सब अब तो भवन निर्माण होना चाहिए || 

उठ गए देवसब आया है मुहूर्त शुभ मिलकर अब जयजयकार होनी चाहिए | 
हट गए घटाटोप  शंकाये सब दूर हुई  अब बस प्रेम का दौर होना चाहिए || 
करो तैयारी अब कार  सेवा शुरू हो अब मिल जय जयश्रीराम होनी चाहिए | 
बने भव्य मंदिर  गूंजे  नाम श्रीराम का जग में सन्देश यही जाना चाहिए || 

एक थे सदा से हम टूटे नहीं कभी थे देश द्रोहियों भी समझ जाना चाहिए | 
देर चाहे कितनी हो न्याय अभी जीवित है यह कभी भूलना नहीं चाहिए || 
जीत हुई सत्य की अंत हुआ झूठ का  अब न कोई बिलम्ब होना चाहिए | 
छोड़ बैरभाव सब मिल एक साथ अब जय जय श्रीराम कहनी चाहिए || 




 








सोमवार, 23 सितंबर 2019

जगत गुरु



बज उठा जगत में फिर डंका ,
भारत हो फिर जग का गुरु रहा |
यह बोला नहीं किसी से हमने
यह जग का दादा बोल रहा || 1||

तब कितना समय लगा होगा,
हम जब  विश्व गुरुपद पाए  थे |
था त्याग ऋषि मुनियों का ही ,
जब हम जग में परचम लहराये थे || 2||

मत करो आंकलन स्वार्थपूर्ण ,
कुछ त्याग अवश्य करना होगा |
बनना है जगत गुरु फिर से ,
तो धैर्य तनिक धरना होगा  || 3 ||

माना हैं तकलीफें बहुत मगर ,
मत इस तरह धैर्य का त्याग करो |
आज हैं अगर  गगन में घटाटोप,
तो कल दिनकर का भी इंतजार करो || 4||

है यह सत्य जिसे स्वीकार करो ,
कल आने वाला अपना होगा |
 खो चुके बिगत में जो अपना ,
वह सबका सब अपना होगा || 5 ||

है नहीं दूर वह दिवस तनिक,
जब जग में हम छा जायेंगे |
जो कह रहे आज हम ही सब हैं ,
फिर वो भी जयकार लगायेंगे || 6 ||

विश्वाश करो जननायक पर ,
हम फिर से  परचम लहरायेंगे |
जो खो चुके प्रतिष्ठा मुनियों की,
वह फिर से वापस पा  जायेंगे  || 7 ||

सोचो क्या थे क्या हो गए आज,
इस पर भी तनिक विचार करो |
किसके करण यह दशा हुई,
इस पर भी तनिक विचार करो || 8 ||












बुधवार, 24 जुलाई 2019

मॉब लॉन्चिंग


जब सत्ता शासक मद में,
मदहोश घूमने लगता है |
सब कानून धरे रह जाते हैं,
और तंत्र डूबने लगता हैं ||

जब कानूनों के रखवाले ही,
खुद ही भक्षक बनजाते हों  |
वर्दी का धर्म भूल स्वयं करके ,
निज घर भरने लग जाते हों ||

तब जनता का इस वर्दी से.
विश्वाश टूटने लगता हैं|
ओर न्याय पंगु हो जाता है
जन का सब्र टूटने लगता है ||

सत्ता हित में श्वेत भेड़िये,
जब निज धर्म भूलने लगते हैं |
देश धर्म को छोड़दूर जब ,
निज स्वार्थ देखने लगते हैं ||

अपराधी जब सरे आम.
यों नजर घूमते आते हैं|
वर्दी के संरक्षण से जब,
निर्दोष फँसाये जाते हैं ||

तब जाकर जनता बेचारी,
असहाय स्वयं को  पाती है |
अँधा कानून देखकर के,
खुद ही निर्णय कर जाती है ||

है दोष नहीं  इसमे जन का,
कानून व्यस्था ठीक करो|
जो घूम रहे हों सरेआम,
उनका भी उचित प्रबंध करो||

बंद करो अब दोष लगाना,
तुम जाति धर्म के नाम पर |
निर्दोषों को मत बटवाओं,
यों वोट बैंक के नाम पर ||

जन मानस अब जाग गया है,
तुम  खेल खेलना बंद करो |
जिस खातिर तुमको भेजा है,
पहले वह अपना कर्म करो ||

कानून व्यस्था ठीक करो,
वरना तुम न बच पाओगे |
जन मानस चल पड़ा अगर,
तो नजर भागते आओगे ||

देवदत्त पालीवाल"निर्भय"
8619945463














बुधवार, 19 जून 2019

बंध गया ताज हो गया तिलक,

बंध गया ताज हो गया तिलक,
अब कर्म तुम्हें करना होगा |
जिसके बल पर सरताज मिला ,
अब उसको पूरा करना होगा ||

ये जनादेश जो तुम्हे  मिला  ,
का सम्मान तुम्हें करना होगा |
न रह पाए किंचित कमी मात्र ,
का प्रयास पूर्ण करना होगा ||

कहते हैं इसको ही  लोकतंत्र ,
यह अच्छा सबक सिखाता है |
क्षण  जितना ऊँचा उठता है ,
तत्क्षण नीचा आ जाता है ||

होगा कल्याण अगर जन का ,
तुम पथ पर यों बढ़ते जाओगे |
अभिमान किया तुमने किंचित ,
तो तुम राज भोग न पाओगे ||

तुम करो राज पथ खुला हुआ ,
तुम विजय पताका फहराओ |
हो यशगान जगत में चहुंओर ,
बस ऐसा कुछ करके दिखलाओ ||

खुशहाल बने भारत माता ,
हर  तरफ प्रेम संचार बहे |
हो अंत दनुजता का भू से ,
ओ निर्धन भी मालामाल रहे ||

हो ग्राम देवता भी खुशाल,
सबको सबका सम्मान मिले |
न रहे भूख से कोई भूखा ,
सबको सुन्दर आवास मिले ||

 दिखला दो करके  कुछ ऐसा ,
युग युग जन तुमको याद करे |
कर दो माँ का मस्तक ऊँचा ,
हर जन मिल जय जयकार करे ||

तुम काश्मीर को करो  मुक्त ,
 इतना करके दिखला देना |
एक  देश हो एक विधान  ,
यह भी तुम करवा देना ||

हो मंदिर मस्जिद की रार खत्म ,
कुछ ऐसा करके दिखला देना |
जो करे खिलाफत यदि इसकी ,
उस भाषा में समझा देना ||














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गुरुवार, 23 मई 2019

करो अब राज तिलक की तैयारी


हो गया पूर्ण अब महा यज्ञ,
आहुतिया भी सारी पूर्ण हुई | 
अब संशय के बादल  दूर हुए ,
ओ आशाएं  सारी धूल हुई | | 

अब करो तिलक की तैयारी,
है अब फिर देश तुम्हारे हांथो में  | 
अब पूर्ण करो वो कार्य सभी ,
जो किये हुए हैं निज  वादों में || 

देश खड़ा है फिर साथ तुम्हारे ,
अब रंग अपना तुम दिखला दो | 
जो प्रतिघात करे भारत माँ से,
उसको उस  भाषा मैं समझा दो || 

है उम्मीद पुनः तुमसे सबको ,
अभी जो शेष रहा को पूर्ण करो | 
हैं हम साथ तुम्हारे सभी लोग ,
बस तुम अब अपना कर्म करो || 

तुम करो अंत गद्दारों का ,
जो घर में छिप कर बैठे हैं | 
जो समझ रहे हम सबकुछ हैं ,
देश जो समझ बपौती बैठे हैं || 

ये जागीर नहीं है अब्बा की ,
कि हम ही देश चलाएंगे | 
जाग उठा अब जनमानस ,
अब इनको दूर भगाएंगे || 

एक देश और दो संबिधान  ,
इस बार मूल से खत्म करो | 
जो करे दोगली बात अगर ,
तुम उसको पहले  दूर करो || 

एक देश औ एक संबिधान को  ,
तुम  बस अब लागू करवा देना | 
जो करे खिलाफत यदि इसकी ,
बस फिर उस भाषा में समझादेना || 

तुम करो राज्य हो सुखी सभी,
भारत माँ फिर खुशाल बने |
जो रह रहे देश में बन परदेशी।,
उनको भी उनका आवास मिले ||   






शनिवार, 16 मार्च 2019

कुछ पल इन्हे सहना पड़ेगा ||

पर्व है यह मान का सम्मान का ,
व्यर्थ मत सब इसको गवाना | 
कौन हैं कितना समर्पित हितैषी ,
बटन सोचकर  फिर तुम  दबाना || 

बस ईमान की लेकर तराजू,
तुम  तौलना सब आजतक | 
किसने कहाँ कितना किया ,
यह देखना  तुम आजतक || 

देखना कल औ आज को भी ,
थे कहाँ और  अब हैं कहाँ | 
कल  देखते थे हम जंहा को ,
देखता है अब हमको जंहा || 

मत गंवाना मत को अपना ,
सब  सोचकर मतदान करना | 
हो जो देश का सच्चा हितैषी ,
समर्थन बस उसका ही करना || 

सब ठीक करना एक दिन में ,
क्या  इतना सरल आसान हैं | 
था जो दशक से  गर्त में सब  ,
 न यह एक दिन का काम है || 

भूल कर इन दल-दलों को ,
हित देश में मतदान करना | 
हो जो ईमान का सच्चा पुजारी   ,
बस उसी का ध्यान रखना || 

तुम लोभ न लालच में आना ,
भला कब कहाँ किसका किया है | 
ये सब  धुर विरोधी हैं हमारे | 
इन्होने साथ दुश्मन का दिया हैं  ,

ये कह रहे सब माफ़ होगा  ,
क्या ये जेब से अपनी करंगे | 
क्या कर रहे थे आजतक ,
ये जो आज और अब करेंगे || 

सदा धर्म को बांटा इन्होने 
और जातियाँ भी बाँट डाली | 
मदहोश हो सत्ता के मद में 
मूर्तियों को दी थी गाली || 

इसलिए सब  मन में विचारो ,
फिर दान तुम निज मत करना | 
जो कर रहा हो हित देश का ,
बस न्याय उसके संग ही करना  || 

है चाह यदि  सब हो सुखद ,
फिर धैर्य तो धरना पड़ेगा | 
ये तो क्षणिक सब कष्ट हैं ,
कुछ पल इन्हे सहना पड़ेगा || 









 













गुरुवार, 22 नवंबर 2018

मैं अवधपुरी का राम लला हूँ

मैं अवधपुरी का राम लला हूँ,
सरयू तट से बोल रहा हूँ |
अब मेरा दिल भर आया है,
उर के काठी खोल रहा हूँ || १||

मैंने धर्म स्थापना की थी,
तुमने चौपट कर डाली |
मैंने न्याय व्यवस्था सौंपी,
तुमने नर्क बना डाली || 2||

मैं राजपाठ से दूर रहा था,
तुमने सब कुछ मान  लिया |
मैंने सबको सम्मान दिया था,
तुमने सबको अन्याय दिया || ३||

मैंने अबतक जो देखा है,
उसका खाका खोल रहा हूँ |
अब मेरा दिल भर आया है
दिल के काठी खोल रहा हूँ ||४||

मेरी जग में छवि बनी थी
तुमने धूमिल कर डाली |
कुर्सी के खातिर तुम सबने
जनता भी बटवा डाली || 5||

जब जब होता है चुनाव
मुद्दा वही पुनः होता है |
हम मंदिर वंही बनायेंगे
सुनकर दिल मेरा रोता है || ६||

अब उठ मेरा विश्वाश रहा है
दिल की  वाणी बोल रहा हूँ |
अब मेरा दिल भर आया है
उर की कंठी खोल रहा हूँ ||7 ||

आशाएं सब ख़त्म हो गयी
धूमिल सब उम्मीद हुई है |
देख देख परिदृश्य देश के ,
नेत्रों की  दृष्टि  क्षीण हुई है || 8 ||

आँखों में आंसू छलक पड़े थे
जब नाली में कंकाल मिले थे |
पर तुम सत्ता की  चकाचोंध में
होकर के मदहोश पड़े थे || 9 ||

जब जब तुमने विषय उठाया
तब तब मेरा कद घटवाया |
जग में हम बदनाम हुए हैं
ओ कितनों का सिंदूर मिटाया || 10 ||

जो अबतक मैंने  देखा है
पढ़ उसका भूगोल रहा हूँ |
अब मेरा दिल भर आया है
मन की  वाणी बोल रहा हूँ || 11 ||

यह जीवन दुश्कर लगता है
मुझको अब आजाद कराओ |
जनता को जो वचन दिया था
उसको पूरा कर दिखलाओ || 12 ||

मैंने क्या अपराध किया था
जो मुझको ऐसा कैद किया है |
मैंने सुख सम्मान दिया था
पर तुमने भृष्टाचार दिया है || 13 ||

वह मेरा हे चमत्कार था
हो ऐसा निर्णय सुनवाया था |
तुम कर न सके उपयोग पूर्ण
जो ऐसा अवसर आया था || 14 ||

तुमने हो भी कर्म किये हैं
उनका दर्पण दिखा रहा हूँ |
अब मेरा दिल भर आया है
उर की कंठी खोल रहा हूँ ||15 ||

आधा जीवन बीत चूका हैं
बस शेष बीत यों जायेगा |
जो अबतक न बन पाया
 वह अब क्या बना पायेगा || 16  ||

अब देश वासियो आँखे खोलो
अपना तुम निर्णय करदो |
रक्षा में जो मेरी असमर्थ हों
अब ऐसे पहरेदार बदल दो || 17 ||

जैसा पहले कर दिखलाया था
वैसा फिर से कर  दिखलादो
जनता को हनुमान बनाकर
बस मेरा सुन्दर भवन बनादो || 18 ||

राजनीति के दलदल में  फंस
पा निज को असमर्थ रहा हूँ |
मैं अवधपुरी का रामलला हूँ,
सरयू तट से बोल रहा हूँ || 19 ||







गुरुवार, 15 नवंबर 2018

यह कैसा छिड़ा संग्राम है

ये  हो रहा है क्यों शोर इतना ,
औ दृष्टि कुछ आता नहीं है |
सब आरोप प्रत्यारोप करते,
और समझ कुछ आता नहीं || 1 ||

हैं बज गई  रण भेरिया अब  ,
अब क्यों हो रहा गुणगान हैं|
सब दे रहे है अपनी सफाई,
यह कैसा छिड़ा संग्राम है|| 2 ||

सब बोलते हैं हम धवल हैं,
न्याय तुम सबको मिलेगा |
जो दे सके न आज तक
वह अब भला कैसे मिलेगा || 3 ||

बस छल कपट से वोट लेना,
ये इनका पुराना काम है |
बस उद्देश्य सबका एक है,
यह कैसा छिड़ा संग्राम है|| 4 ||

जब वैठते थे ये सदन में ,
तब दर्शन बड़े अनमोल थे |
अब खा रहे हैं धूल पथ की,
तब देखकर न बोलते थे || 5 ||

बस भूख है कुर्सी की मन में ,
और बस एक सबका धाम है |
और जाति सबकी एक एक है
यह कैसा छिड़ा संग्राम है|| 6 ||

अब सब कर रहे हैं प्रार्थना,
 विश्वाश हम पर कीजिये |
हम पेट निर्धन का भरेंगे,
बस वोट हमको दीजिए || 7 ||

जो करे सके न आज तक,
अब वो सब गिनाते काम हैं |
न अब रहेगा कुछ अधूरा,
यह कैसा छिड़ा संग्राम है|| 8 ||

अब भी संभल लो सोच लो,
औ  परिणाम भी देना पड़ेगा |
तुम गुमराह करना छोड़ दो,
अब काम भी करना पड़ेगा || 9 ||

सिरमौर तुम जन के बनोगे,
बस करना तुम्ही को काम है |
क्यों हो रहे भयभीत इतने
यह कैसा छिड़ा संग्राम है|| 10 ||













शनिवार, 3 नवंबर 2018

हिसाब चाहिए

वादे किये निर्माण के पत्थर न रख सके,
जाना था सागर पार कर दरिया न सके |
छोड़ो कुटिल ये निति अब इंसाफ चाहिए,
बीते दिनों से  आज तक का हिसाब चहिए ||1||

आखिर धर्म के नाम पर कबतक चलाओगे,
अबतक किया गुमराह कर अब न और पयोगे |
मढ़कर गले मैं दोष न अब निज को बचाइए,
बीते दिनों से  आज तक का हिसाब चहिए||2||

करना है राज देश पर तो कुछ कर दिखाए,
सुनने नहीं उपदेश अब बस प्रमाण चाहिए | 
पिस रहा है आज जान बस अब नये चाहिए,
बीते दिनों से  आज तक का हिसाब चहिए || 3||

मंजिल नहीं है दूर जग स्वतः झुक जायेगा,
है टसक बस एक उर में का भवन बन पायेगा |
जो बड़े किये निर्माण के अब उसको निभाये,
बीते दिनों से  आज तक का हिसाब चहिए || 4||


बुधवार, 26 सितंबर 2018

अच्छे दिन


माना कुछ के अच्छे दिन आये हैं,
पर क्या पहले सबके  अच्छे थे |
हो गए आज इतने समझदार,
क्या पहले तुम केवल बच्चे थे ||1||

अच्छे दिन का यह अर्थ नहीं,
बस जेब तुम्हारी भर जाय |
अच्छे दिन है यह अर्थ मात्र,
देश प्रगति पथ पर जाय || 2||

अच्छे दिन का सीधा मतलब,
हर और खुशाली हो जाये |
मिले सभी को हक़ अपना  ,
हर ओर शांति फिर हो जाये || 3||

आतंकबाद हो समूल नष्ट ,
अपराध कहीं पर नहीं घटे |
जो कर रहे भेद कुर्सी ख़ातिर,
उनको भी सीधी सजा मिले || 4 ||

है परिवर्तन की चाह अगर,
तो कुछ धीरज रखना होगा|
है चाह अगर मीठे फल की ,
तो कुछ और समय देना होगा || 5 ||

वर्तमान और भूतकाल को,
आगे रखकर तुम तोलो |
हम कहां खड़े कहां खड़े हैं
देखो पहले फिर मुख खोलो || 6||

पहले देखो सोचो ओ समझो,
मन में तनिक विचार करो |
कौन सही है कौन गलत है ,
तब निज मत उपयोग करो ||7 ||

वंशवाद की राजनीति से ,
अब देश दूर रखना होगा |
जो करे काम हित देश सदा,
बस वोट उसे देना होगा || 8 ||





शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

बीस शीश हम काटेंगे


जिसके घर का दीपक बुझता , 
उस घर मालिक से पूंछो  | 
जिसका आंचल रिक्त हो गया,
उस बूढी माँ से जाकर पूंछो ||1|| 

सिंदूर पूछ जिसकी मांग का,
उस असहाय विधवा से पूंछो | 
है शेष अगर  मन मे ममता,
दिलपर हाथ रखो सोचो ||२|| 

याद करो वह कथन पुराना,
हम बीस काट कर लायेंगे | 
जो जिस भाषा का आदी है,
उस भाषा में बतलायेंगे ||3|| 

जिस दिन घर का कोई भी,
सीमा पर मारा जायेगा | 
क्या कष्ट बीतता है उन पर,
साफ समाज आ जायेगा ||4|| 

मंचो पर भाषण देकर तुम,
मत इतश्री करो कर्तव्यों की | 
वादे करके पीछे हट जाना,
यह भाषा नहीं हैसभ्यों की ||5|| 

एक रैंक औ एक पेंशन,
का वादा अभी अधूरा है | 
यों वादे बहुत किये थे,
पर यह भी अभी अधूरा हैं ||6||  

इस तरह करोगे राजनीति,
तो विश्वास सदा उठ जायेगा | 
फिर बैरक खाली हो जायेंगी,
सीमा पर लड़ने कोई जायेगा ||7|| 

जो शीश कटाते है अपने,
उन पर तो थोड़ा रहम करो | 
भेदभाव को देश बहुत पड़ा हैं 
बस सेना को इससे दूर रखो ||8||  
 





शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

उसके संग भी ऐसा होगा


बंद करो सब मिलना जुलना,
अब सीधा उचित प्रबंध करो |
जो अबलाओं पर जुल्म करे,
उन पर सीधा प्रतिबंध करो ||1||

कर दो बंद मिलना जुलना,
सब राशन पानी बंद करो |
जो  इनका  सहयोग  करे,
इनको समाज से दूर करो ||2||

करके काला मुख  कुल का,
इनको चौराहों पर घुमाओ |
कर सके न कोई और भेड़िया,
अब ऐसा करके दिखलाओ ||3||

मजबूर करो इनको इतना,
ये जीवित ही मृत हो जाएं |
करो दो दण्डित इतना ये,
स्वप्नों में भी न कर पाएं ||4||

दे दो सबको संदेश साफ,
परिणाम बहुत बुरा होगा |
जो कृत्य करेगा यदि ऐसा,
उसके संग भी ऐसा होगा ||5||



गुरुवार, 6 सितंबर 2018

सब धरा धरा रह जायेगा

जिनके बल से सत्ता पाई,
मत उनका त्रिस्कार करो |
कमजोर नहीं बस मौन लिया है,
इस पर थोड़ा ध्यान करो ||1||

हमदर्दी का यह अर्थ नहीं है,
हम सबकुछ सहते जायेंगे |
तुम छुरा घोंपते चले जाओ,
और हम सब सहते जायेंगे ||२||

आरक्षण का यह अर्थ नहीं,
हम अपने हाथ कटा डाले |
मोदी जी बस अपने हैं ,
पर वोट सदा तुमको डाले ||३||

यदि तुम अपने धर्म निभायोगे,
तो हम अपना धर्म  नेभायंगे |
यदि भला करोगे सबर्णो का,
तो हम तुमको सदा जिताएंगे ||४||

अभी समय हैं निर्णय बदलो,
सबको उचित सम्मान मिले |
अगर गलत हैं दोषी है तो ,
तो फिर वैसा फरमान मिले ||5||

बाँट चुके हो जातिपांत को ,
अब और बाँटना बंद करो |
वचन दिया सबके विकास का,
उसको भी थोड़ा याद करो ||6||

बंद करो अब स्वप्न दिखाना,
बरना फिर पछताओगे |
हांड़ी यदि जल गयी अगर
तो पुनः कहा से लाओगे ||7||

तुम जिस अहंकार में डूबे हो,
सब धरा धरा रह जायेगा |
मिला आज तो समय तुम्हें,
वह पुनः नहीं मिल पायेगा ||8||














शनिवार, 1 सितंबर 2018

तरुण सागर - एक युग का अंत

करता है त्याग जो घरपरिवार का, क्षणभंगुर समझ  इस संसार को |
तपते हैं खुद त्याग की ज्वाल में, जाकर कुछ दे पाते हैं जगत  को ||
मरते नहीं हैं त्यागते हैं तन बस , जग में सदा को अमर हो जाते हैं |
करते नहीं परवाह जो जगत की ,तब जाकर तरुण सागरबनपाते हैं||
                                             



सोमवार, 20 अगस्त 2018

प्रतिशोध -प्रकृति का केरल में


जब मार प्रकृति की पड़ती है.
 सब जतन धरे रह जाते है |
वह जब रूप दिखती है अपना,
सब  तर्क धरे रह जाते हैं ||१||

जीवित पशु का वध कर खाना,
तुम शान समझते थे अपनी |
कहते हैं इसे प्रकृति का कहर,
दिखलाओ तुम ताकत अपनी ||२||

इसको कहते हैं मौन मार,
आवाज तलाक न आती हैं |
बदला लेती है वह अपना,
पर नहीं दिखाई देती हैं ||3||

फिर मूक मौन की  हत्या करना,
किस धर्म शास्त्र में लिखा हुआ |
जब जब व्यभिचार बढ़ा भू पर,
तब ही ऐसा परिणाम हुआ ||4||

देवों का जिसमे है निवास,
जो माता का गौरव पाती है |
फिर तुम तो रोटी खाते हो,
तुमको शर्म नहीं क्यों आती है ||5||

हर धर्म सिखाता दया करो ,
मत वे जुवान को मारो तुम |
दुष्कर्म किये अब तक तूने,
अब जाकर उसे सुधारो तुम ||6||

अब जाओ शरण उसी की तुम,
जिसकी रोज दुहाई देते थे |
करते थे उछल कूद निशदिन,
विधाता स्वयं समझते थे ||7||

क्यों मांग रहे हो भीख आज,
थे जग में तुम साम्यर्थवान |
निसदिन हत्या करके तुमने
वसुधा कर दी थी लोहूलूहान ||8||

है समय सुधारो कर्मो को
हत्यांए करना बंद करो |
इनके ही कारण जीवित हो
प्रेम दिखाना शुरू करो ||9||














शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

तुम एक अटल ध्रुव तारे थे

राजनीति के रंगमंच के,
तुम एक अटल ध्रुव तारे थे |
सवा करोड़ भारत वालों की.
आँखों के तुम राजदुलारे थे ||१||

दल से उठकर तुमने हरपल,
सदा अपना धर्म निभाया था |
सिद्धांतो पर सदा अटल थे,
जग में परचम फहराया था ||2||

थे राजनीति के सफल पुरोधा,
पर शव्दों के भी रचनाकार थे |
हार कभी स्वीकार नहीं थी,
तुम ऐसे एक किरदार थे ||3 ||

जो दल से उठकर देश हेतु,
बस अपना धर्म निभायेगा |
एक नहीं दो नहीं सेकड़ो,
युग तक वह पूजा जायेगा ||4||

थे शव्द शिल्प तुम थे वाक्पटु,
प्रतिपक्षी भी शीश झुकाते थे |
इसीलिए तुम सदा डगर के
अटल पथिक कहलाते थे ||5 ||

तन से यद्यपि चले गए हो,
पर मन से जा न पाओगे |
जय जवान ओ जय किसान,
के लिए पुकारे जाओगे ||६||


मंगलवार, 14 अगस्त 2018

यह तो पथ की प्रथम कड़ी है

आ गया समय कर दिखला दो ,
अब अपनी आन शान को |
सूखे तन पर वृक्ष लगाकर,
निज माँ के गौरव गान को ||1||

साथ सभी हैं एक न समझो,
मिलकर सब  चलते जायेंगे  |
जिसे हरीभरी हम छोड़ गए थे ,
हम फिर से कर दिखलायेंगे ||2||

यह तो पथ की प्रथम कड़ी है,
हमें पथ  तो अभी बनाना हैं |
हम अत्तीत में थे क्या जग में ,
करके जग को दिखलाना हैं ||3||

कुटिल नियत से मुक्ति हेतु,
बस कुल की लाज बचानी थी|
कमजोर नहीं थे कभी धरा पर,
जग में पहिचान हमारी थी ||4||

देवदत्त पालीवाल"निर्भय"
9448417578,8619945463






सोमवार, 23 जुलाई 2018

जीवन का उद्देश्य

 
छोड़कर मन के सभी विकार ,
करें मिल सभी नया आगाज |
त्याग दो मन के सारे द्वेष,
तभी तो होगा सफल समाज ||

करो न निज पर कभी गुमान ,
धरा पर आते सभी समान |
व्यर्थ में करते क्यों अभिमान ,
करो मिल सबका सब सम्मान ||

समझकर जीवन का उद्देश्य ,
करो कुछ ऐसा कर्म महान |
जगादो ऐसी ज्योति जहान ,
रहेगा युगों युगों तक  नाम ||

अभी हम पथ में पीछे है ,
अभी तो आगे जाना  हैं |
स्वप्न होगा तब ही साकार,
सभी को आगे आना हैं ||

स्वार्थ को रख दो पहले दूर ,
मानलो जग को निज परिवार |
भूलकर हम ही सब कुछ हैं ,
खोल दो दिल के सारे द्वार ||

मिलेगी मन को ख़ुशी अपार ,
बढ़ेगा कुल का जग में नाम |
सोच रहोगे हर्षित मन ही मन
आज तन आया है कुछ काम ||












रविवार, 22 जुलाई 2018

चम्बल का पानी

है याचना मेरी सभी से ,
रहम अब तो कीजिए |
अबतक रही बदनाम जग में ,
और अब मत कीजिए ||
शून्य है सबकुछ धरा पर
है नीर के अपनी कहानी |
सिर उनके कभी झुकते नहीं ,
जो पी चुके चम्बल का पानी ||

(चम्बल का पानी खंड काव्य से )
      देवदत्त पालीवाल"निर्भय"